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Shyam Rahasyam (श्यामरहस्यम्)

255.00

Author Pradeep Kumar Rai
Publisher Prachya Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2006
ISBN -
Pages 370
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code RTP0150
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Description

श्यामरहस्यम् (Shyam Rahasyam) तन्त्र-शास्त्र का कौलधर्म परमग्रहण दुरधिगम्य तथा दुरारोह है। जो अल्पज्ञानी है वो प्रवेश करने में असमर्थ होते हैं। क्रियावान व्यक्ति का सद्‌गुरु के निकट शिक्षा प्राप्त न होने पर तन्त्रशास्त्र का एक वर्ण भी मर्मार्थ बोध (हृदयंगम) करना बिलकुल संभव नहीं है। इसलिए इसका पात्पर्यार्थ भी वाह्निक शब्दार्थ में ग्रहण न करके आध्यात्मिक, पारमार्थिक अर्थ में ही ग्रहणीय है, युक्ति एवं विचार सम्मत भी है। जिस प्रकार योगक्रिया में तत्वादि न्यास का नाम आलिंगन, ध्यान का नाम चुम्बन, आवाहन का नाम शीत्कार, नैवेद्य का नाम अनुलेपन, जप का नाम रमण तथा दक्षिणान्तकरण का नाम रेतः पातन है। भगलिङ्ग के कीर्तन का अर्थ शिव- काली का नामोच्चारण, विपरीता का अर्थ कुलकुण्डलिनी का सहस्त्रार स्थित, शिव के सहित योगकरण अर्थात् प्रवृत्ति के विपरीत भावावलम्बन है।

तन्त्र शास्त्र में मद्य मांस, मत्स्य, मुद्र एवं मैथुन-इन पाँचों को पंचतत्व या पंचमकार कहते हैं। ये पाँच शब्द के आद्याक्षर का समाहार संयोग से पंचमकार शब्द गठित हुआ है। (१) मद्य-ब्रह्म में सर्वकर्मफल का समर्पण है। (२) मांस-सुख-दुःख में समज्ञान रूप सात्विक ज्ञान है। (३) मत्स्य-असत्संग त्याग एवं सत्सङ्ग आश्रय है। (४) मुद्रा एवं मूलाधारस्थिता कुलकुण्डलिनी शक्ति का योग-प्रक्रिया सहाय षट्चक्रभेद करके शिरस्थः सहस्रदल कमल कर्णिकान्तर्गत परमशिव के सहित संयोग संसाधन है। (५) मैथुन-ब्रह्मरन्ध्रस्थित सहस्त्रार का बिन्दुरूप शिव सहित कुण्डलिनी शक्ति का सम्मिलन है।

श्यामारहस्य ग्रन्थ अत्यन्त गुह्याति-गुह्यतर साधन प्रसंगों से भरा पड़ा है। जिससे सभी प्रकार की साधना की जा सकती है। जिनका वर्णन बहुत सरलता एवं प्रमाणिकता पूर्वक किया गया है। पुस्तक के शुरू में सभी क्रियाओं को किस प्रकार से करें उनका बहुत प्रमाणिक उदाहरण दिया गया है जिससे सुधी पाठकों को सभी क्रियाओं को करने में सुविधा होगी।

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